मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इस नाते उनके लिए कुछ ऐसे कर्तव्य निर्धारित है जिसका पालन करना अति आवश्यक है। अध्यापक / गुरु ईश्वर का दूसरा रूप माना गया है। हमारे धर्म में तीन ऋण माने गये है। पितृ ऋण, ऋषि ऋण और देव ऋण। इन तीनों ऋणों को पूर्ण करने से मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है। जब मनुष्य अपने माता-पिता की सेवा तन और मन से करता है तब वह पितृ ऋण से मुक्त होता है उसी प्रकार ऋषि ऋण तभी पूर्ण होता है जब विद्यार्थी शिक्षा अध्ययन कर अपने माता-पिता और अध्यापक को सम्मान देता है। प्राचीन काल में विद्यार्थी गुरु कुल में शिक्षा करते थे। वे सभी प्रकार से सफल होकर ही तथा गुरु दक्षिणा देकर गुरुकुल से लौटते थे। उस समय विद्यार्थी वेद, शास्त्र, पुराण तथा मानव मूल्य के ज्ञान से परिपक्व हो जाते थे। परन्तु आज स्थिति कुछ अलग है। आज की प्रणाली में बच्चे गुरुकुल में शिक्षा अध्ययन न कर प्राथमिक और माध्यमिक में पढ़ने जाते हैं। अध्यापक के उत्तरदायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों को सही शिक्षा, प्रेरणा, सहनशीलता, व्यवहार में परिवर्तन तथा मार्ग दर्शक प्रदान करे, उनके भविष्य को उज्जवल बनाए।
एक आदर्श अध्यापक अच्छे और श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण होता है। उन्हें अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। जो अध्यापक समय का पालन करता है और योजना बनाकर विषय अनुसार ज्ञान प्रदान करता है वही सही गुरु कहलाता है। समय बड़ा बलवान होता है। संसार में सब कुछ खो जाने के बाद लौटाया जा सकता है परन्तु समय जा कर पुनः वापस नहीं आता। अध्यापक को समय का पालन करना चाहिए। समय अनुसार अपना पाठ्यक्रम पूरा करने से बाद में उसी की प्रशंसा की जाती है। अगर विद्यार्थी जीवन का एक भी क्षण व्यर्थ में बीत जाए तो जीवन पर्यन्त हाथ / पछताना पड़ जाएगा।
एक आदर्श गुरु में नम्रता और श्रद्धा होती है। इसीलिए कबीर जी ने कहा था कि ' ऐसी बाणी बोलिए मन का आपा खोय, अवरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय '
हिन्दी भाषा एक मधुर और मीठी भाषा है। एक अध्यापक को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे बच्चे उन से प्यार करे, उन्हें अपनी भावनाओं और मन की इच्छाओं को व्यक्त करने में कोई झिझक न हों। मृदु भाषी से हम संसार को जीत सकते हैं परन्तु क्रोध, अहंकार, लोभ, मद से हमारी हार होती है। अध्यापक अपनी वाणी से बच्चों का मन जीत ले तो बच्चे उन के हो जाते हैं। अध्यापक में धैर्य और सहनशीलता होनी चाहिए जिससे न केवल बच्चे परन्तु आस-पास के लोग उन की प्रशंसा के पुल बांधे और उन से आकर्षित हो।
अध्यापक बच्चों के समक्ष स्वास्थ्य की बातें सिखाएं। खेल-कूद करने से बच्चे स्वस्थ रहते हैं। प्रतिदिन खेल-कूद, व्यायाम और संतुलित भोजन करने से मनुष्य का शरीर तंदुरुस्त रहता है। संतुलित भोजन खास-कर शाकाहारी भोजन खाने से मन और दिमाग पर अच्छा असर होता है। मन पवित्र होता है, दिमाग चंचल नहीं होती। संतुलित भोजन शरीर में स्फुर्ति लाती है। अधिक मात्रा में सेब, दूध और अन्य फल खाने से त्वचा में निखार आता है। प्रतिदिन पन्द्रह मिनट व्यायाम करने से शरीर में ताज़गी होती है और बाल भी लम्बे होते हैं। अध्यापक बच्चों को अन्तर और बाहर की सफ़ाई से अवगत कराए। हमारे शरीर में साठ प्रतिशत भाग पानी है। शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाने से शरीर अस्वस्थ हो जाते है इसीलिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीने का प्रयत्न करें। स्नान कर के, साफ़ कपड़े, साफ़ जूते पहनकर पाठशाला आने से अच्छा ज्ञान मिलता है। अध्यापक बच्चों को सिखाए कि सम्पत्ति गयी तो कुछ न गया परन्तु स्वास्थ्य गयी तो सब कुछ चला गया।
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